खोजाली त्रासदी – मानवता के विरुद्ध अपराध


आज़रबैजान की जनता के विरुद्ध आर्मेनिया के राष्ट्रवादियों द्वारा अपनाई गई जातिसंहार और आक्रमण की नीति का इतिहास दो सौ साल से भी अधिक समय से चला आ रहा है। इस नीति का उद्देश्य यह रहा है कि आज़रबैजानियों को उनकी मूल स्थान से निकाल दिया जाए और उस भूमि पर “महा आर्मेनिया” की स्थापना की जाए जो आर्मेनियाई इतिहासकारों और सिद्धान्तकारों के दिमाग की उपज है। इस घृणित और भयावह नीति को अंजाम देने के लिए उन्होंने तरह-तरह के उपायों और साधनों का इस्तेमाल किया है, ऐतिहासिक प्रमाणों को झुठलाया है, राजनीतिक भावनाओं को भड़काया है तथा सरकार के स्तर भी उग्र राष्ट्रवाद, अलगाववाद और पड़ोस के लोगों के प्रति आक्रमण की भावना का समर्थन किया गया है। इस उद्देश्य से आर्मेनिया में तथा बाहर के कुछ देशों में भी “राष्ट्रीय-सांस्कृतिक”, धार्मिक, राजनीतिक, यहाँ तक कि आतंकवादी संगठन भी स्थापित किए गए थे, आर्मेनियाई प्रवासियों और विभिन्न लॉबियों की सम्भावनाओं का भी इस्तेमाल किया गया था। 

उन्नीसवीं शताब्दी के पहले दो-तीन दशकों के दौरान रूस और ईरान के बीच हुई लड़ाइयों के परिणामस्वरूप आज़रबैजान की भूमि के दो हिस्सों में विभाजित हो जाने से कराबाख़ के इलाके में ईरान और टर्की से भारी संख्या में आर्मेनियाई लोगों के प्रवास की लक्ष्योन्मुख प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी जिसकी वजह से कराबाख़ में जनांकीय स्थिति पूरी तरह बदल गई थी। सन् 1905 में आर्मेनियाई राष्ट्रवादियों ने आज़रबैजानियों की उनकी अपनी ही भूमि पर हत्याएँ की थीं तथा सैंकड़ों बस्तियों को उजाड़ डाला था। सन् 1918 में बाकू कम्यून के समर्थन से जिसका राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व मुख्यतः आर्मेनियाइयों के हाथ में था उस घृणास्पद योजना को अंजाम दिया गया था जिसका उद्देश्य था बाकू प्रान्त से आज़रबैजानियों का सफ़ाया करना। उसका परिणाम यह हुआ कि कई हजार शान्तिपूर्ण निवासियों को मार डाला गया, आवासीय बस्तियों को, सांस्कृतिक स्मारकों को, मस्जिदों और स्कूलों को नष्ट कर दिया गया। आर्मेनियाई लोगों ने ग्यान्ज, शमाख़ी, गूबा, ल्यान्क्यारान, कराबाख़, मुगान तथा आज़रबैजान के कई और स्थानों में रह रहे शान्तिपूर्ण आज़रबैजानियों को मार डाला था। 

आज़रबैजानियों के प्रति अपनाई गई जातिसंहार और निष्कासन की नीति सोवियत सत्ता के दौरान भी प्रच्छन्न और छद्म रूप से जारी रही थी जबकि सोवियत सत्ता उपराष्ट्रों और राष्ट्रों की समानता का नारा देती रहती थी। उस काल में आज़रबैजान के सम्बन्ध में कई सारे अनुचित और अन्यायपूर्ण निर्णय लिए गए थे। बीस के दशक में आज़रबैजान की सीमाओं में आने वाला ज़ानगेज़ूर बिना किसी आधार के आर्मेनिया को सौंप दिया गया था जिसका नतीजा यह हुआ कि आज़रबैजान की प्राचीन भूमि – नख्चीवान – हमारी मातृभूमि के शेष भाग से कट गई। नागोर्नी कराबाख़ में स्वायत्त आर्मेनियाई इकाई स्थापित हो गई।

सन् 1948-1953 के दौरान सोवियत संघ के नेतृत्व द्वारा लिए गए मनमाने निर्णय के परिणामस्वरुप हजारों आज़रबैजानियों को उनकी अपनी ही मूल भूमि से निष्कासित करने में आर्मेनियाइयों को सफलता प्राप्त हुई और इस तरह, वास्तव में ही, आर्मेनिया में उन्होंने एकजातीय गणतन्त्र स्थापित कर डाला। 

सन् 1988 में शुरू हुए निराधार नागोर्नी-कराबाख़ संघर्ष, आज़रबैजान के इलाकों में पनप रही आर्मेनियाई प्रतिक्रिया और इस प्रतिक्रिया का शिकार हुए निर्दोष आज़रबैजानियों की कटु पीड़ा के प्रति पूर्व सोवियत संघ के नेतृत्व तथा सभ्य दुनिया ने बेरुखा मौन धारण कर रखा था। इस स्थिति से प्रेरित होकर और मौके का फ़ायदा उठाते हुए आर्मेनियाई लोग आज़रबैजानियों के विरुद्ध जातिसंहार तथा इतिहास में पहले कभी न देखे गए अत्याचारों की नीति को लगातार जारी रखने में लग गए। आर्मेनिया की सेना ने आज़रबैजान के 20 प्रतिशत भाग पर कब्जा कर लिया था जिसमें से छह जिले नागोर्नी कराबाख़ के आसपास थे – केलबाजार, लाचिन, अग्दाम, फ़िज़ुली, जेब्राइल, गुबाद्ली और ज़न्गिलान। दस लाख से भी अधिक आज़रबैजानियों को नृशंसतापूर्वक अपनी मूल भूमि से बाहर कर दिया गया था, कई हज़ार लोग मारे गए थे, अपंग हो गए थे और कैद कर लिए गए थे। सैंकड़ों-हजारों आवास, हज़ारों सांस्कृतिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य संस्थान, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्मारक, मस्जिदें, आराधना-स्थल और कब्रिस्तान अविश्वसनीय आर्मेनियाई बर्बरता का शिकार होकर नेस्तनाबूद हो गए थे।

संघर्ष के आरम्भिक वर्षों में नागोर्नी कराबाख़ के आज़रबैजानी गाँवों क्यारकीजहान, मेशाली, गुश्चुलर, गरादाग्ली, अग्दाबान और अन्य कई गाँवों में की गई सशस्त्र आर्मेनियाई हमलावरों की विनाश-लीला और अन्ततः खोजाली में किया गया जातिसंहार ऐसे घोर अपराध हैं जो “अभागे और बहुपीड़ित आर्मेनियाइयों” की आत्मा में काले धब्बे की तरह हमेशा के लिए अंकित रहेंगे।

खोजाली की त्रासदी बीसवीं शताब्दी के सबसे भयानक अपराधों में से एक है जो उन आर्मेनियाई लोगों ने आज़रबैजान की जनता के साथ किया था जो “महा आर्मेनिया” और एकजातीय राज्य बनाने की उग्रराष्ट्रवादी नीति पर चल रहे थे। सन् 1905 में शुरू हुए आज़रबैजानी भूमि पर अपने कब्जे को आर्मेनियाई हमलावरों ने बीसवीं सदी के अन्त में भी जारी रखा है क्योंकि उन्हें मानवता के विरुद्ध किए गए भयावह् अपराधों और पाशविकताओं के लिए अभी तक कोई दण्ड ही नहीं मिला है, इसलिए कि विश्व-समुदाय तथा अन्तरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा उनके अपराधों की अनदेखी की गई है, उनकी भर्त्सना नहीं हुई है और उन्हें रोका भी नहीं गया है।

26 फरवरी 1992 की रात को जो कि आज़रबैजान के इतिहास में खूनी अक्षरों में अंकित हो गई है आर्मेनियाई सेना ने प्राचीन शहर खोजाली को पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर डाला था। इस कुकृत्य में उसे सोवियत काल में खानकेन्दी शहर में स्थित 366-वीं वाहनधारी रेजीमेंट के तकनीकी साज-सामान और सैनिकों की मदद मिली थी जिसके बहुसंख्य स्टाफ़ आर्मेनियाई ही था।

सबसे पहले तो तोपों और अन्य सैन्य साज-सामान से भारी गोलाबारी करके खोजाली का विनाश किया गया था। पूरे शहर में जगह-जगह आग लग गई थी। उसके बाद कई दिशाओं से पैदल सेना शहर में घुस आई थी जिसने जीवित बचे हुए निवासियों को अपनी नृशंसता का शिकार बनाया था।

उस दिन थोड़े-से समय में ही सशस्त्र आर्मेनियाई दलों ने क्रूर और पाशविक व्यवहार करते हुए 613 शान्तिपूर्ण निवासियों को मार डाला था और 421 लोगों के अंग क्षत-विक्षत कर दिए थे।

जो शान्तिपूर्ण निवासी उनके घेरे से बच कर निकलने में सफल हुए थे उन्हें आर्मेनियाई सैनिकों ने घात लगा कर जंगलों में पकड़ लिया था तथा और भी नृशंसता के साथ उनकी हत्या कर डाली थी। उन पाशविक जल्लादों ने लोगों की गर्दनें काट दी थीं, उनका अंग-भंग कर दिया था, छोटे बच्चों की आँखें फोड़ दी थीं, गर्भवती महिलाओं के पेट काट डाले थे, कई लोगों को जमीन में ज़िन्दा गाड़ दिया था या जला डाला था और कुछ शवों को बम बाँध कर उड़ा दिया था।

उस काल में 1275 लोग लापता हो गए थे और कैद कर लिए गए थे। दस हजार की आबादी वाला शहर नष्ट कर दिया गया था, इमारतें तोड़ दी गई थीं और जला डाली गई थीं। 150 लोग जिनमें 68 औरतें और 26 बच्चे भी शामिल हैं अभी तक लापता हैं। इस त्रासदी के फलस्वरूप शान्तिपूर्ण नागरिकों में से एक हजार से भी ज्यादा लोग गोलीबारी से हुए तरह-तरह की मात्रा के घावों के कारण विकलांग हो गए थे। मारे गए लोगों में से 106 महिलाएँ, 83 अल्पायु के बच्चे और 70 बूढ़े थे। 487 लोग अपंग हो गए थे जिनमें से 76 किशोर थे।

इस सैन्य-राजनीतिक अपराध के फलस्वरूप 6 परिवार पूरी तरह समाप्त हो गए थे, 25 बच्चों के माता-पिता में से कोई भी जीवित नहीं बचा था, 130 बच्चे अपनी माता या पिता में से किसी एक से वंचित हो गए थे। शहीद हुए लोगों में से 56 ऐसे थे जो जिन्दा जला दिए गए थे।

खोजाली जातिसंहार के वार्षिक शोक-दिवस के अवसर पर आज़रबैजान जनता के प्रति अपने सम्बोधन में आज़रबैजान गणराज्य के राष्ट्रपति महोदय इलहाम अलीयेव ने यह कहा कि “किसी भी तरह की सैन्य आवश्यकता के बगैर सैंकड़ों शान्तिपूर्ण नागरिकों को इतनी क्रूरता के साथ मौत के घाट उतार दिया गया था कि जिसकी इतिहास में और कोई मिसाल नहीं है। उनके शवों का पूरी तरह निरादर किया गया था। बच्चों, औरतों, बूढ़ों और पूरे-के-पूरे परिवारों का हत्या कर दी गई थी। न केवल आज़रबैजानी जनता बल्कि मानवता के विरुद्ध किया गया बीसवीं सदी के अन्त का यह सबसे भयंकर अपराध था। मानवता के विरुद्ध किए गए अपराधों में खोजाली त्रासदी अपनी भयंकरता, बर्बरता तथा क्रूरता में सबसे अलग है।”

यह कल्पना तक करना कठिन है कि इस तरह की बर्बरता जिसका कि कोई और उदाहरण इतिहास में नहीं मिलता है बीसवीं शताब्दी के अन्त में मनुष्य द्वारा की गई थी और वह भी सारी दुनिया की आँखों के सामने!

यह सामूहिक और क्रूर जनसंहार आज़रबैजान की राष्ट्रीय स्वतन्त्रता तथा क्षेत्रीय अखण्डता के विरुद्ध आतंक की नीति का प्रदर्शन तो है ही, साथ ही यह न केवल आज़रबैजानियों बल्कि सम्पूर्ण मानवता के विरुद्ध एक नृशंस अपराध है। खोजाली में जातिसंहार करने का आर्मेनियाई राष्ट्रवादियों का उद्देश्य यह था कि आज़रबैजानी जनता में डर पैदा कर दें, उसकी संघर्ष करने की इच्छा-शक्ति को तोड़ दें और उसका नाश कर दें क्योंकि वह अपनी भूमि हमलावरों को सौंपना नहीं चाहती है।

खोजाली शहर पर हमला करने के ऑपरेशन का नेतृत्व किया था 366-वीं रेजीमेंट की दूसरी बटालियन के कमाण्डर सेइरान ओगान्यान, तीसरी बटालियन के कमाण्डर येव्गेनी नाबोकीख़ और पहली बटालियन के हेडक्वार्टर अधिकारी वल्येरी चित्च्यान ने। इस ऑपरेशन में 90 टैंकों और युद्धक गाड़ियों तथा अन्य सैन्य साज-सामान का उपयोग किया गया था। शान्तिपूर्ण नागरिकों के जातिसंहार में रेजीमेंट के जिन लोगों ने सक्रिय भाग लिया था उनके नाम हैं – स्लाविक अरुत्युन्यान, अन्द्रेइ इष्खान्यान, सेर्ग्येइ बेग्लार्यान, मोव्स्येस अकोप्यान, ग्रिगोरी किसेबेक्यान, वाचिक मिर्ज़ोयान, वचागान अइरियान, अलेक्सान्द्र अइरापेत्यान तथा अन्य; इस ऑपरेशन में सक्रिय भाग लेने वाले आर्मेनियाई सशस्त्र फ़ॉर्मेशन के सदस्यों के नाम हैं – कारो पेत्रोस्यान, सेइरान तुमास्यान, वल्येरिक ग्रिगोर्यान तथा अन्य। यह पता चला है कि खोजाली की शान्तिपूर्ण जनता पर नृशंसता बरपाने वालों में जो लोग शामिल थे उनके नाम हैं – ख़ानकेन्दी शहर के आन्तरिक मामलों के विभाग का अधिकारी आर्मो अब्राम्यान, अस्केरान्स्की जिले के आन्तरिक मामलों के विभाग का अधिकारी माव्रिक गुकास्यान, उसका उपअधिकारी शागेन बर्सेग्यान, नागोर्नी कराबाख़ में आर्मेनियाई लोक मंच का अध्यक्ष विताली बालासान्यान, ख़ानकेन्दी के नगर कारावास का अधिकारी सेर्झ़ीक कोचार्यान तथा अन्य।

सेइरान ओगान्यान जो खोजाली के जातिसंहार के समय मेजर के पद पर था अब जनरल बना हुआ है और आर्मेनिया गणराज्य का रक्षा मन्त्री है। इस अपराध के कुछ अन्य भागीदार भी आर्मेनिया द्वारा स्थापित किए गए कठपुतली शासन में और आर्मेनिया के शासकीय विभागों में विभिन्न पदों पर बैठे हुए हैं।

11 दिसम्बर 1946 को पारित संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव संख्या 96 में कहा गया है कि किसी वर्ग विशेष के जीवन के अधिकार को ही अस्वीकार करने वाला जातिसंहार मनुष्य की मान-मर्यादा का अपमान है और वह मानव-जाति को मनुष्य द्वारा रचे गए भौतिक तथा आत्मिक मूल्यों से वंचित करता है। इस तरह के कृत्य राष्ट्र संघ के लक्ष्यों और उद्देश्यों के सर्वथा विपरीत हैं। 9 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव संख्या 260 द्वारा “जातिसंहार के अपराध का निवारण तथा उसके लिए दण्ड” विषयक समझौते को पारित किया था जो सन् 1961 में लागू हो गया था। इस समझौते में जातिसंहार के अपराध को वैधानिक आधार प्रदान किया गया है। इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देशों द्वारा यह उत्तरदायित्व स्वीकार किया गया है कि वे जातिसंहार के निवारण के लिए आवश्यक कदम उठाएँगे और उसके अपराधियों को दण्ड देंगे। इस तरह उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि जातिसंहार अन्तरराष्ट्रीय विधि के मानदण्डों का उल्लंघन है, चाहे वह शान्ति के समय किया गया हो या युद्ध के समय। खोजाली में किए गए भयंकर अपराध का स्वरूप और उसका विस्तार यह दिखाता है कि उस दौरान जो कुछ भी घटित हुआ वह जातिसंहार के अपराध के अन्तर्गत आता है जैसा कि संयुक्त राष्ट्र के उक्त समझौते में कहा गया है। पूर्वनियोजित सामूहिक और निर्मम हत्याएँ इस उद्देश्य से की गई थीं कि इस क्षेत्र में रहने वालों को पूरी तरह से मार डाला जाए, मात्र इसलिए कि वे लोग आज़रबैजानी थे।

युद्ध के दौरान किसी देश के व्यवहार को निर्धारित करने वाले अन्तरराष्ट्रीय कानूनी मानदण्डों की आर्मेनिया द्वारा की गई उपेक्षा से सम्बन्धित तथ्य सिर्फ़ इतने तक ही सीमित नहीं हैं। अन्तरराष्ट्रीय मानवीय विधि के अनुसार युद्ध केवल युद्धरत सशस्त्र सेनाओं के बीच ही होना चाहिए। सामान्य नागरिकों को सैन्य झड़पों में भाग नहीं लेना चाहिए और उनके प्रति सम्मान का भाव दिखाया जाना चाहिए। चतुर्थ जेनेवा समझौते “युद्ध के दौरान नागरिकों की सुरक्षा” की धारा 3 के अनुसार सामान्य नागरिकों के जीवन और सुरक्षा को खतरा पहुँचाना, विभिन्न साधनों से उनकी हत्या करना, किसी प्रकार से अंग-विच्छेद करना, सामान्य जनों के साथ क्रूर व्यवहार करना, उन्हें पीड़ा पहुँचाना और यातना देना, मनुष्य की गरिमा को ठेस पहुँचाना, उन्हें अपमानित और लांछित करना प्रतिबन्धित हैं। इस समझौते की धारा 33 में कहा गया है कि किसी एक भी नागरिक को जिसने कोई नियम-भंग नहीं किया हो दण्डित नहीं किया जा सकता है।

सामान्य नागरिकों के प्रति सामूहिक दण्डात्मक कार्रवाई, उन्हें डराना-धमकाना, उनका दमन करना और उन्हें आतंकित करना स्पष्ट शब्दों में वर्जित किया गया है। इस समझौते की धारा 34 के अनुसार सामान्य नागरिकों को बन्धक बनाना भी वर्जित है। मगर आर्मेनिया ने अकेले खोजाली में ही एक हजार से ज्यादा नागरिकों को बन्धक बना कर इस सिद्धान्त की खुल कर उपेक्षा की। उक्त कानूनी मानदण्डों की धज्जियाँ उड़ाते हुए आर्मेनिया की सशस्त्र टुकड़ियों ने खोजाली के शान्तिपूर्ण नागरिकों का विनाश करने के लिए क्रूरतापूर्ण उपायों का सहारा लिया। आर्मेनिया की उपरोक्त कार्रवाइयाँ 9 दिसम्बर 1948 को पारित हुए “जातिसंहार के अपराध का निवारण तथा उसके लिए दण्ड” विषयक समझौते में उल्लिखित जातिसंहार के अपराध के अन्तर्गत आती हैं।

खोजाली पर कब्जा करने के दौरान आज़रबैजान की शान्तिपूर्ण जनता के साथ अकल्पनीय पाशविकता से पेश आने वाले लोगों को अभी तक कोई दण्ड नहीं मिला है जबकि उन्होंने ऐसा करके जेनेवा समझौते का, “मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा” की धाराओं 2, 3, 9 और 17 का, “असाधारण परिस्थितियों में तथा सामरिक टकरावों के दौरान बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा” विषयक समझौते का तथा “जातिसंहार के अपराध का निवारण तथा उसके लिए दण्ड” विषयक समझौते का बुरी तरह उल्लंघन किया है। दण्डहीनता के कारण नए-नए अपराध करते रहने का आधार बना हुआ है।

आर्मेनिया को अपनी इन पाशविकताओं पर बिलकुल भी पछतावा नहीं है, उलटे वह तो आज़रबैजानियों के विरुद्ध किए गए इस जातिसंहार का औचित्य सिद्ध करने में लगा हुआ है और जिन लोगों ने इस जातिसंहार में भाग लिया था उन्हें वहाँ राष्ट्रीय गौरव प्राप्त है। आर्मेनिया में खुल्लम-खुल्ला आज़रबैजान-विरोधी नीति का पालन किया जा रहा है और सरकारी स्तर पर भी आज़रबैजान की और भी अधिक भूमि को हथियाने के लिए वैचारिक आधार निर्मित किए जा रहे हैं। आर्मेनिया के झूठे इतिहास को राष्ट्रीय नीति का दर्जा दिया गया है ताकि आर्मेनिया के युवाओं के मन में उग्रराष्ट्रवाद की भावना के बीज डाल दिए जाएँ।

यह विचित्र ही कहा जाएगा कि कई देशों के सासंदों ने खोजाली त्रासदी जैसे वास्तविक जातिसंहार के प्रति आँखें मूँदते हुए उसे “आर्मेनियाइयों के जातिसंहार” की दन्तकथा में परिवर्तित करके उसे ही बहस का विषय बना दिया है और साथ ही ऐतिहासिक तथ्यों की अनदेखी करते हुए इस विषय में उन्होंने अनुचित निर्णय भी ले डाले हैं। आर्मेनिया-आज़रबैजान तथा नागोर्नी कराबाख़ के मसले पर चल रहे टकराव का शान्तिपूर्ण समाधान निकालने के प्रयासों का अभी तक विफल रहने का यही एक मुख्य कारण है जिसके लिए आर्मेनियाई पक्ष ही दोषी है।

साल-ब-साल 1915 की घटनाओं को उभारते हुए जब आर्मेनियाई लोगों का ‘तथाकथित’ जातिसंहार घटित हुआ था और उसका दुष्प्रचार करते हुए आर्मेनियाई इतिहासकारों तथा राजनीतिकों का यह प्रयास रहा है कि विश्व-समुदाय आज़रबैजानियों के सामूहिक हत्याकाण्ड को भूल जाए जो इस शताब्दी के आरम्भ में वास्तव में घटित हुआ था। इस तरह वे इस मसले को उलझाने की कोशिश में हैं।

आर्मेनिया की भूमि पर अभी भी आर्मेनिया का कब्जा बना हुआ है। आर्मेनियाई कसाइयों ने अपने लालची उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निर्दोष लोगों पर नृशंसता से गोलियाँ चला कर उन्हें मार डाला था। प्रत्येक आज़रबैजानी का यह कर्तव्य है कि वह अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से खोजाली त्रासदी को मानवता के विरुद्ध किए गए जातिसंहार और अपराध के रूप में स्वीकार करवाए। इस तरह का अपराध फिर कभी नहीं होना चाहिए।

इस घटना के विषय में आज़रबैजानी जनता के सर्वमान्य राष्ट्रीय नेता हैदर अलीयेव ने यह कहा है –“ खोजाली त्रासदी बीसवीं सदी की सबसे भयानक मानवीय त्रासदियों में से एक है। खोजाली जातिसंहार की सच्चाई को विश्व-समुदाय के सामने हर तरह से लाया जाना चाहिए ताकि ऐसी त्रासदी दुनिया के किसी भी कोने में फिर कभी घटित ना हो जो क्रूरता की दृष्टि से दुनिया में अपने ढंग की अकेली त्रासदी है। हमें गम्भीरतापूर्वक और लक्ष्योन्मुख होकर ऐसा काम करना है कि मानवतावाद के आदर्शों के प्रति निष्ठावान लोग इस त्रासदी के विषय में स्पष्ट शब्दों में अपने दृष्टिकोण को व्यक्त कर सकें।”

जनता के लगातार आग्रह करने पर जब जून 1993 में आज़रबैजानी जनता के सर्वमान्य राष्ट्रीय नेता हैदर अलीयेव ने फिर से देश का नेतृत्व सँभाला तब जाकर खोजाली जातिसंहार समेत हमारी बहुत-सी राष्ट्रीय त्रासदियों का राजनीतिक-कानूनी मूल्यांकन करना सम्भव हो सका। हमारे सर्वमान्य नेता की पहल पर देश की मिल्ली मजलिस ने 24 फरवरी 1994 को “खोजाली जातिसंहार दिवस” शीर्षक प्रस्ताव पारित किया। उस प्रस्ताव में खोजाली जातिसंहार के कारणों का विस्तार से खुलासा किया गया है और उस त्रासदी के दोषियों के नाम भी दिए गए हैं।

निस्सन्देह, खोजाली की सच्चाई को विश्व-समुदाय के ध्यान में लाने, पूरी दुनिया में इस सच्चाई को प्रचारित करने तथा इस जातिसंहार का निष्पक्ष मूल्यांकन करने के लिए किए गए उपायों का एकमात्र श्रेय हैदर अलीयेव निधि को जाता है जिसका मार्गदर्शन श्रीमती मेहरीबान अलीयेवा कर रही हैं। हैदर अलीयेव निधि लगातार कई सालों से दुनिया के 70 देशों में खोजाली त्रासदी के सम्बन्ध में तरह-तरह के आयोजन करवा रही है। यह निधि सम्मेलन और स्मृति-सन्ध्याएँ आयोजित करती है, पुस्तक-पुस्तिकाएँ प्रकाशित करती है, डीवीडी (DVD) निकालती है और फ़िल्में बनाती है।

“खोजाली के प्रति न्याय” नामक अन्तरराष्ट्रीय अभियान साल-ब-साल फैलता जा रहा है जिसकी पहल की है हैदर अलीयेव निधि की उपाध्यक्ष तथा रूस के युवा आज़रबैजानी संगठन की अध्यक्ष लैला अलीयेवा ने। इस अभियान के अन्तर्गत पूरी दुनिया में सैंकड़ों आयोजन किए जा रहे हैं। यूरोपीय संघ के लगभग सभी सदस्य-देशों में, नवराष्ट्रकुल के देशों में, एशिया में, दक्षिणी और उत्तरी अमेरिका में सम्मेलन, संगोष्ठियाँ और धरने आयोजित किए जाते हैं। इस अभियान की बदौलत ही कई अन्तरराष्ट्रीय मंचों ने खोजाली में घटित हुई त्रासदी को स्वीकार किया है। हैदर अलीयेव निधि तथा इस्लामी सम्मेलन संगठन के युवा मंच की पहल के फलस्वरूप 31 देशों के सांसदों ने खोजाली त्रासदी को मानवता के विरूद्ध किया गया अपराध माना है। 20 देशों के प्रमुख विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों में युवाओं के फ़्लैशमॉब आयोजित हुए हैं। इसके साथ ही इस अभियान की नई पहल भी शुरू हो गई है – निवेदन और अनुरोध किए जा रहे हैं जिनमें यह माँग की जा रही है कि इस त्रासदी को जातिसंहार तथा मानवता के विरुद्ध अपराध माना जाए। इन निवेदनों और अनुरोधों को राष्ट्राध्यक्षों और राज्याध्यक्षों के पास, यूरोपीय सुरक्षा और सहयोग संगठन के मीन्स्क ग्रुप के पास, यूरोपीय परिषद की संसदीय सभा, राष्ट्र संघ के सचिवालय, विश्व की संसदों और अन्तरराष्ट्रीय संगठनों के पास भेजा गया है।

“खोजाली के प्रति न्याय” नामक अभियान की जानकारी देने और उसका प्रचार करने के लिए वर्तमान समय में दुनिया के बहुत सारे देशों में हजारों स्वयंसेवकों द्वारा अन्तरराष्ट्रीय अभियान सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है ताकि विश्व समुदाय का ध्यान खोजाली त्रासदी के सत्य की ओर खींचा जा सके और विश्व समुदाय द्वारा इस त्रासदी का राजनीतिक-वैधानिक तथा आचारपरक मूल्यांकन किया जा सके।

आज़रबैजान की सरकार आर्मेनियाई उग्रराष्ट्रवादियों द्वारा आज़रबैजानियों के विरुद्ध किए गए अपराधों जिनमें खोजाली की त्रासदी भी शामिल है की ओर विश्व समुदाय का ध्यान खींचने के लिए लगातार और लक्ष्योन्मुख होकर काम करती आ रही है ताकि इस त्रासदी को जातिसंहार माना जाए।

अपनी ओर से विश्व समुदाय अब अच्छी तरह से समझने लगा है कि सच्चाई क्या है। खोजाली त्रासदी के सम्बन्ध में इस्लामी सम्मेलन संगठन द्वारा पारित विशेष प्रस्ताव अन्तरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा स्वीकृत पहला अभिलेख है जिसमें इस त्रासदी को “मानव जाति के विरुद्ध अपराध” के रूप में स्वीकार किया गया है। 51 देशों द्वारा पारित इस प्रस्ताव में खोजाली त्रासदी को “शान्तिपूर्ण जनता का आर्मेनियाई सेना द्वारा किया गया सामूहिक जातिसंहार” तथा “मानवता के विरुद्ध किया गया अपराध” माना गया है।

आर्मेनियाई राष्ट्रवादियों से आज़रबाइजान की सोच बिलकुल अलग है क्योंकि इस मसले से आज़रबैजान कोई राजनीतिक, वित्तीय, सीमा-सम्बन्धी या कोई अन्य फ़ायदा नहीं उठाना चाहता है। हमारा उद्देश्य है – ऐतिहासिक न्याय की पुनर्स्थापना, अपराधियों का पर्दाफ़ाश और उन्हें न्याय के लिए अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को सौंपना। इसलिए यह जरूरी है कि इस क्षेत्र में आर्मेनिया के उग्रराष्ट्रवादियों द्वारा चलाए जा रहे जातीय अलगाववाद से उत्पन्न विश्व के लिए खतरे को तथा अन्य देशों की जनता के प्रति घृणा और आतंक की विचारधारा को उजागर किया जाए। यह उन लोगों की स्मृति के प्रति हमारा नागरिक और मानवीय कर्तव्य है जो वीरतापूर्वक खोजाली में शहीद हुए थे।