\"किताबि-देदे गोर्गुद\" दास्तान की 1300-वीं जयन्ती के अवसर पर आयोजित समारोह में आज़रबैजान गणराज्य के राष्ट्रपति हैदर अलीयेव द्वारा 9 अप्रैल 2000 को \"गणराज्य\" प्रासाद में दिया गया भाषण

सम्माननीय राज्याध्यक्षो!

मजलिसों के सम्माननीय अध्यक्षो!

सम्माननीय अतिथियो!

देवियो और सज्जनो!

आज के दिन आज़रबैजान की जनता अपने गौरवशाली महाकाव्य \"किताबि-देदे गोर्गुद\" की 1300-वीं जयन्ती मना रही है। यह जयन्ती एक ऐतिहासिक घटना है जिसका हमारे लिए, समस्त तुर्क जगत के लिए और समस्त मानव-जाति की संस्कृति के लिए असाधारण महत्व है। इस समारोह के द्वारा हम अपनी ऐतिहासिक जड़ों, अपनी जातीय परम्पराओं, अपने जातीय-आत्मिक मूल्यों, अपनी संस्कृति तथा ज्ञान की अपनी परम्परा के प्रति सम्मान तथा कृतज्ञता अभिव्यक्त कर रहे हैं। यह हमारी जातीय मुक्ति तथा देश की स्वतन्त्रता का उत्सव है।

\"किताबि-देदे गोर्गुद\" दास्तान 1300 साल से जीवित चली आ रही है जो आज़रबैजानी जनता और सारे तुर्कभाषियों का महान ऐतिहासिक ग्रन्थ है। इस बात पर विचार करते हुए कि \"किताबि-देदे गोर्गुद\" दास्तान की रचना करने में हमारे लोगों ने 1300 साल के समय से पूर्व भी कितनी मेहनत की होगी कि जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने इस ऐतिहासिक ग्रन्थ को रचा हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि हमारी जनता का इतिहास कितना प्राचीन है, उसकी जड़ें कितनी गहरी हैं और उसकी संस्कृति कितनी समृद्ध है।

1300 सालों के दौरान \"किताबि-देदे गोर्गुद\" ने बहुत लम्बा, शानदार और गौरवशाली मार्ग तय किया है। तरह-तरह की कठिनाइयों और विवशताओं के बावजूद 1300 सालों से \"किताबि-देदे गोर्गुद\" हमारे लोगों की दिमागी खुराक रही है, इससे उन्हें जीने का, संघर्ष करने का सम्बल मिलता रहा है और इससे उन्हें अपनी जातीय चेतना को पहचानने और उसे कायम रखने में भी मदद मिली है।

इसके साथ ही यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि \"किताबि-देदे गोर्गुद\" के 1300 साल लम्बे इतिहास के महत्व को अच्छी तरह समझने के साथ-साथ हमें यह बात भी माननी होगी कि पिछले तीन सालों में आज़रबैजान में इस महान ग्रन्थ के अध्ययन, अनुसन्धान और प्रचार-प्रसार की दिशा में बहुत काम किया गया है जिसके फलस्वरूप हमारी जनता, समस्त तुर्कभाषी जगत और तुर्कभाषी लोग \"किताबि-देदे गोर्गुद\" के बारे में जान सके हैं। साथ ही सारी दुनिया को हम यह दिखा सके हैं कि यह ग्रन्थ कितनी अमूल्य विरासत है।

कल ही तुर्कभाषी राज्यों के राष्ट्रमण्डल का छठा शिखर सम्मेलन बाकू में समाप्त हुआ है। इस शिखर सम्मेलन में हमने तुर्कभाषी राज्यों के राष्ट्रमण्डल की स्थापना के बाद से पिछले आठ सालों के दौरान किए गए काम की समीक्षा की, उस पर विचार-विमर्श किया और उसकी बड़ी उपलब्धियों को भी स्वीकारा। निश्चय ही, तुर्कभाषी राज्यों के राष्ट्रमण्डल की स्थापना तुर्क जगत की तथा हम में से प्रत्येक के जीवन की एक ऐतिहासिक घटना है। यह राष्ट्रमण्डल इन आठ सालों से जीवित है, विकास कर रहा है और इसका विस्तार हो रहा है - इस तथ्य से एक ओर तो यह स्पष्ट होता है कि इसकी कितनी अधिक आवश्यकता थी और, दूसरी ओर, यह भी दिखाई देता है कि भविष्य में हमारे लोगों को इससे कितना अधिक लाभ पहुँचनेवाला है।

बीते हुए सालों की हमारी उपलब्धियाँ हम सबके सम्मिलित प्रयासों का परिणाम हैं। साथ ही यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि तुर्की गणराज्य और हमारे प्रिय मित्र, हमारे भाई सुलेमान देमिरेल की पहल पर गठित हुआ तुर्कभाषी राज्यों का यह राष्ट्रमण्डल तुर्की गणराज्य के भारी योगदान का साक्षात प्रमाण प्रस्तुत करता है।

आज के दिन हम सब छठे शिखर सम्मेलन की सफल समाप्ति पर \"किताबि-देदे गोर्गुद\" की जयन्ती के लिए एकत्र हुए हैं जो कि हम सबका ही ऐतिहासिक ग्रन्थ है। इस कार्यक्रम को तुर्कभाषी राज्यों के अध्यक्षों के साथ मिल कर मनाने से इस जयन्ती का महत्व बढ़ गया है और इसका स्तर भी अधिक ऊँचा हो गया है। इस समारोह में भाग लेने वाले सभी लोगों के प्रति मैं कृतज्ञता अभिव्यक्त करता हूँ जिन्होंने हमारा निमन्त्रण स्वीकार किया और आज़रबैजान में आने की कृपा की। मैं आप सबको हार्दिक बधाई देता हूँ।

मैं तुर्की गणराज्य के राष्ट्रपति, आज़रबैजान की जनता के परम मित्र और मेरे प्रिय भाई सुलेमान देमिरेल का हार्दिक स्वागत करता हूँ!

मैं कज़ाख़स्तान गणराज्य के राष्ट्रपति, हमारे सम्माननीय अतिथि और परम मित्र तथा भाई नूरसुल्तान नज़रबायेव का हार्दिक स्वागत करता हूँ!

मैं किर्गीज़स्तान गणराज्य के राष्ट्रपति और मेरे परम मित्र तथा भाई अस्कार अकायेव का हार्दिक स्वागत करता हूँ!

मैं उज़बेकिस्तान गणराज्य के शिष्टमण्डल के अध्यक्ष तथा उज़बेकिस्तान की ओली मजलिस (सर्वोच्च सभा) के सभापति आदरणीय एर्किन ख़लीलोव का हार्दिक स्वागत करता हूँ!

मैं तुर्कमेनिस्तान गणराज्य के शिष्टमण्डल के अध्यक्ष तथा वहाँ की मजलिस के सभापति आदरणीय सह्हात मुरादोव का हार्दिक स्वागत करता हूँ!

मैं यूनेस्को के महानिदेशक तथा हमारे आदरणीय अतिथि माननीय कोइसिरो मात्सूरु का हार्दिक स्वागत करता हूँ!

मैं आज़रबैजानी जनता के परम मित्र और फ़्रान्स की संसद के सबसे वरिष्ठ सदस्य माननीय झ़ाक बोमेल का हार्दिक स्वागत करता हूँ!

मुझे इस बात का उल्लेख करते हुए सन्तोष का अनुभव हो रहा है कि \"किताबि-देदे गोर्गुद\" की जयन्ती के अवसर पर वे सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, विद्वज्जन और लेखक उपस्थित हैं जिन्होंने आज़रबैजान में आयोजित हुए शोध सम्मेलनों में भाग लिया है। वे यहाँ पर हमारे साथ मौजूद हैं। आज़रबैजान में पधारने के लिए मैं अपने सभी मेहमानों के प्रति आभार प्रकट करता हूँ और आप सबका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।

पिछले तीन सालों में \"किताबि-देदे गोर्गुद\" पर किए गए अनुसन्धानों और इसके प्रचार से आज़रबैजानी जनता को बहुत लाभ पहुँचा है। हमें अपनी ऐतिहासिक जड़ों और अपनी जातीय-सांस्कृतिक विरासत का अहसास होने लगा है। हम यह समझने लगे हैं कि आज़रबैजानी जनता और सारे तुर्कभाषी लोगों ने विश्व सभ्यता में कितना बड़ा योगदान किया है। इस श्रेणी में \"किताबि-देदे गोर्गुद\" का विशेष स्थान है।

\"किताबि-देदे गोर्गुद\" - हमारा प्रमुख ग्रन्थ है। देदे गोर्गुद - हमारे प्राचीन पूर्वज हैं। हमें इस बात का गर्व है कि हमारे पास \"किताबि-देदे गोर्गुद\" जैसा ऐतिहासिक ग्रन्थ है और देदे गोर्गुद जैसे प्राचीन पूर्वज के होने का भी हमें गर्व है।

\"किताबि-देदे गोर्गुद\" ने हमेशा ही लोगों को और विभिन्न जातियों को एकता तथा शान्ति के लिए प्रेरित किया है। सन् 1992 में तुर्कभाषी राज्यों के राष्ट्रमण्डल की स्थापना देदे गोर्गुद के आदर्शों की पूर्ति का एक ज्वलन्त उदाहरण है।

देश की स्वतन्त्रता और राष्ट्रीय मुक्ति की प्राप्ति के बाद से इस एकता को सुनिश्चित करने का सुअवसर हमें प्राप्त हुआ है और हमे समझ में आया है कि हमारी जनता के लिए यह सब कितना महत्वपूर्ण है।

\"किताबि-देदे गोर्गुद\" द्वारा दिया गया एकता का सन्देश आज हममें से प्रत्येक के लिए आवश्यक है। आज़रबैजान के लिए तो जो कि अपनी राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के मार्ग पर चल रहा है और देश में न्यायपूर्ण, लोकतान्त्रिक तथा धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की ओर अग्रसर है जातीय एकता और जातीय एकजुटता का महत्व सबसे अधिक है।

आज के दिन \"किताबि-देदे गोर्गुद\" की 1300-वीं जयन्ती मनाते हुए हम उसकी विरासत के प्रति अपनी निष्ठा को अभिव्यक्त कर रहे हैं और हम यह घोषणा करते हैं कि स्वतन्त्रता के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए आज़रबैजान अपने सामने खड़ी हुईं सभी कठिन और जटिल समस्याओं का हल निकालते हुए और भी अधिक एकजुट हो जाएगा और इस तरह सदा आगे बढ़ता रहेगा।

\"किताबि-देदे गोर्गुद\" एक वीरकाव्य है। आज के समय में अपने जीवन में इस महाकाव्य के आदर्शों का पालन करते हुए हम अपनी जनता में प्रेम, मातृभूमि के प्रति समर्पण तथा देशभक्ति की भावनाओं को और अधिक गहरा बनाने में सहायक हो रहे हैं।

\"किताबि-देदे गोर्गुद\" लोगों को और जनता को शान्ति तथा सुलह के लिए प्रेरित करती है। हमारी जनता \"किताबि-देदे गोर्गुद\" के इन आदर्शों के प्रति निष्ठावान है। आज़रबैजान के विरुद्ध आर्मेनिया द्वारा किए गए हमले के परिणामस्वरूप हमारी जमीन के 20 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा कर लिया गया है। कब्जा की गई भूमि से दस लाख से भी ज्यादा आज़रबैजानियों को बाहर कर दिया गया है जो अब बहुत बुरे हालातों में जी रहे हैं। हमें बहुत भारी धक्का लगा है। इस सबके बावजूद आज़रबैजान की जनता ने सारी दुनिया के सामने अपनी शान्तिप्रिय नीति का प्रदर्शन किया है। हम तो देदे गोर्गुद द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर चल रहे हैं। हमारा मार्ग शान्ति का मार्ग है। हम इस टकराव को शान्तिपूर्ण तरीके से हल करना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि सभी देशों में, विशेषकर तुर्कभाषी देशों में शान्ति और अमन-चैन को मज़बूती मिले। इस तरह आज के समारोह के अवसर पर हम फिर से देदे गोर्गुद की विरासत के प्रति अपनी निष्ठा प्रदर्शित कर रहे हैं।

\"किताबि-देदे गोर्गुद\" ऐसा ग्रन्थ है जिसमें महान वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और आत्मिक-आध्यात्मिक विचारों का समन्वय देखने को मिलता है। \"किताबि-देदे गोर्गुद\" के अध्ययन तथा वर्तमान पीढ़ी तक इसे पहुँचाने की दिशा में अभी तक काफी काम किया जा चुका है। विशेष रूप से पिछले तीन सालों में आज़रबैजान के विद्वानों, गवेषकों, लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया काम उच्च कोटि का माना जा सकता है। इसलिए आज के इस जयन्ती-समारोह के अवसर पर मैं अपने उन विद्वानों, लेखकों तथा सारे नागरिकों के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने \"किताबि-देदे गोर्गुद\" पर अनुसन्धान-कार्य और इसका प्रचार किया है तथा इस जयन्ती के अवसर पर महत्वपूर्ण शोध रचनाएँ और शोध-ग्रन्थ प्रकाशित किए हैं। मेरा यह विश्वास है कि \"किताबि-देदे गोर्गुद\" की 1300-वीं जयन्ती को समर्पित कार्यक्रमों से प्रेरित होकर ये सब लोग अपने शोध-कार्यों को आगे भी जारी रखेंगे, इस दास्तान के अनखुले पृष्ठों तथा अभी तक अज्ञात रहे विचारों का भी अध्ययन करते रहेंगे और आज़रबैजान समेत समस्त तुर्क जगत की वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों तक उन्हें पहुँचाएँगे।

आज हमें इस बात पर अपार गर्व का अनुभव हो रहा है कि हमारे पास \"किताबि-देदे गोर्गुद\" जैसा महान ग्रन्थ है, हम स्वतन्त्र हैं, स्वाधीन हैं और अपने आत्मिक-आध्यात्मिक मूल्यों का तथा अपनी संस्कृति का यथारूप विश्लेषण करके उन्हें अपनी जनता, अपने राष्ट्र तथा भावी पीढ़ियों तक पहुँचा सकते हैं।

\"किताबि-देदे गोर्गुद\" की जयन्ती का सबसे बड़ा महत्व यह है कि यह ग्रन्थ हमारी राष्ट्रीय स्वतन्त्रता और देश की आजादी का प्रमाण है। \"किताबि-देदे गोर्गुद\" के आदर्श हममें से प्रत्येक को स्वतन्त्रता के मार्ग पर चलने को और आज़रबैजान की स्वाधीनता को स्थायित्व प्रदान करने को प्रेरित करते हैं। मैं यह कामना करता हूँ कि आप सब लोग, समस्त आज़रबैजानी जनता, आज़रबैजान के सारे नागरिक इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हों। आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद!

समाचार-पत्र बाकीन्स्की रबोची, 11 अप्रैल 2000.