आज़रबैजानी जातिसंहार दिवस - 31 मार्च - के सम्बन्ध में आज़रबैजान गणराज्य के राष्ट्रपति हैदर अलीयेव द्वारा किया गया सम्बोधन, बाकू, 27 मार्च 2001


मेरे प्यारे देशवासियो!

सन् 1998 से हर साल 31 मार्च के दिन आज़रबैजान गणराज्य में «आज़रबैजानी जातिसंहार दिवस» सरकारी स्तर पर मनाया जा रहा है।

आज़रबैजानियों के विरुद्ध अपनाई गई जातिसंहार की घृणास्पद नीति का शताब्दियों पुराना लम्बा इतिहात रहा है। उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ से ऐतिहासिक रूप से आज़रबैजान की भूमि पर बहुत बड़ी संख्या में आर्मेनियाई लोगों को बसाना शुरू कर दिया गया था जिसका यह निश्चित उद्देश्य था काकेशस के दक्षिण में आर्मेनियाई राज्य के निर्माण की प्रक्रिया शुरू करना और आज़रबैजानियों को अपनी मूल धरती से अपनी जन्म-भूमि से ही निकाल बाहर करना, निर्वासित करना।

जाति-संहार और निर्वासन की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से, विभिन्न ऐतिहासिक परिस्थितियों में और एक सोची-समझी योजना के तहत अमल में लाई जा रही थी। «बृहत् आर्मेनिया» के बेहूदा विचार को अंजाम देने के लिए छद्म विचारधारात्मक धारणाएँ स्थापित की जा रही थीं, आतंकवादी संगठन बनाए जा रहे थे। आर्मेनिया की जनता में राष्ट्रवाद तथा तुर्क और आज़रबैजान जातियों के विरुद्ध उग्र-राष्ट्रीयता की भावनाएँ भरी जा रही थीं।

सन् 1905-1907 के दौरान ज़ारकालीन रूस की सत्ता के द्वारा संरक्षित और प्रेरित किए गए आर्मेनिया के राष्ट्रवादियों ने आज़रबैजानियों का व्यापक नर-संहार किया था और उनके साथ दुष्कर्म किए थे। सैंकड़ों बसी-बसाई बस्तियों को उजाड़ दिया गया था और हजारों आज़रबैजानी आर्मेनियाई आतंक का शिकार हुए थे। मार्च 1918 में बाकू कम्यून के नेताओं के संरक्षण में आज़रबैजानियों का कत्ले-आम किया गया था और उस घृणास्पद योजना को कार्यान्वित करना शुरू कर दिया गया था जिसका उद्देश्य था बाकू गुबेर्निया से आज़रबैजानियों का पूरी तरह से सफ़ाया करके उसका आर्मेनियाईकरण करना। बाकू और आसपास के ... में हजारों शान्तिपूर्ण निवासियों को मार ढाला गया था, मस्जिदें, स्कूल,वास्तुकला के स्मारक नष्ट कर दिए गए थे।

आज़रबैजानियों के विरुद्ध आर्मेनियाइयों की जाति-संहार तथा निर्वासन की नीति सोवि.त शासन के दौरान भी अधिक सूक्ष्म तथा .... रूप में जारी रही थी। ऐतिहासिक रूप से आज़रबैजान का हिस्सा रहे इलाके - गेइच, ज़नगेज़ूर तथा अन्य इलाके - तत्कालीन सोवियत सरकार के नेताओं के समर्थन से आर्मेनिया को हस्तान्तरित कर दिए गए थे, नागोर्नी कराबाख़ के आर्मेनियाइयों को स्वायत्तता प्राप्त हो गई थी जिसके परिणामस्वरूप भविष्य में उनके द्वारा अवैध क्षेत्रीय माँगों के लिए जमीन तैयार हो गई थी। सन् 1948-1953 के दौरान आर्मेनियाइयों को सोवियत नेताओं से यह फैसला करवाने में सफलता प्राप्त हुई थी कि पश्चिमी आज़रबैजान से आज़रबैजानियों का सामूहिक निर्वासन किया जाए जो कि आज़रबैजानियों की ऐतिहासिक भूमि थी।

बीसवीं सदी के आठवें दशक के मध्य से सोवियत नेतृत्व के विशेष संरक्षण के परिमामस्वरूप आर्मेनियाई उग्रवाद तथा अलगाववाद ने नया तथा और भी अधिक भयानक रूप धारण कर लिया। इस ..... अलगाववाद के परिणामस्वरूप जो आगे चल कर व्यापक युद्ध में ही बदल गया था हमारे हजारों-लाखों शान्तिपूर्ण नागरिकों की हत्या कर दी गई थी, हमारे लाखों देशवासियों को शरणार्धी का जीवन जीने को और अमानवीय परिस्थितियों में प्रवासी बन कर रहने को मजबूर होना पड़ा था। जनवरी 1990 में आर्मेनियाई अलगाददादियों के हाथ की कठपुतली बने तत्कालीन सोवियत नेतृत्व ने हमारी जनता का कत्ले-आम किया था। फरवरी 1992 में सोवियत सैनिकों की सहायता तथा प्रत्यक्ष भागीदारी के साथ आर्मेनिया की सैन्य टुकड़ियों ने खोजाली का पूरी तरह से सफाया ही कर दिया था। बिना किसी सैन्य आवश्यकता के हजारों शान्तिपूर्ण नागरिकों जानवरों की तरह मार डाला गया था, उन्हें यातनाएँ दी गई थीं और कैद कर लिया गया था।

इस जातिसंहार ने आज़रबैजान की जनता को भारी राजनीतिक, आर्थिक और मानसिक नुकसान पहुँचाया है। बीसवीं सदी में कुल मिला कर लगभग बीस लाख आज़रबैजानियों को निर्वासन तथा जाति-संहार की नीति के भयानक परिणमों को झेलना पड़ था। आर्मेनिया के राष्ट्रवादियों और उग्रराष्ट्रवादियों ने अपने «बृहत् आर्मेनिया» के ..... को साकार करने के लिए शुरू से ही हमारी जनता और हमारे देश के विरुद्ध बहुत लम्बे समय तक पूरी तैयारी के साथ सूचनात्मक तथा प्रचारात्मक युद्ध छेड़ रखा था। सम्पूर्ण ... का अभियान और घृणास्पद प्रचारात्मक युद्ध अभी भी जारी है। अलग-अलग तरीकों और साधनों को अपनाते हुए आर्मेनिया के उग्रराष्ट्रवादी विश्व-समुदाय को धोखे में डाले हुए हैं, उन्होंने आज़रबैजान तथा पूरे काकेशस के ही इतिहास को झूठे ढंग से पेश किया है, आज़रबैजानियों के विरुद्ध क्रूर मानसिक आक्रमण का अभियान छेड़ रखा है और विश्व-समुदाय के सम्मुख «शोषित और बहुपीड़ित आर्मेनियाई जनता» की छवि प्रस्तुत कर रखी है। आर्मेनियाई समुदाय और आर्मेनियाई लॉबी कई दशकों से इस दिशा में निरन्तर सक्रिय हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि विश्व के कई देशों की संसदों ने जो कि आज़रबैजान की जनता के विरुद्ध आर्मेनियाइयों द्वारा किए गए कब्जे और जाति-संहार के प्रति निर्लिप्त हैं, इन घटनाओं को लेकर ऐसे अनुचित प्रस्ताव पारित हैं जो कि आर्मेनिया की राजनीतिक चालों के हित में हैं, मानो कि ये घटनाएँ सौ साल पहले घटित हुई हों, जैसा कि आर्मेनियाइयों का कहना है। इस तरह के प्रस्ताव, वास्तव में, आक्रामक के कार्यों को बढ़ावा देने का काम करते हैं। अपनी अस्थाई और धोखे में डालनेवाली सफलता से उत्साहित होकर आर्मेनिया के राजनेता और विचारक - जो सभी लोगों के प्रति खुले और छद्म रूप से घृणा की विचारधारा को अपनाए हुए हैं - वास्तव में अन्तरराष्ट्रीय विधि-विधान की उपेक्षा कर रहे हैं और हमारी धरती पर स्थापित सभ्य समाज की मान्यताओं का भद्दा उल्लंघन कर रहे हैं।

आज़रबैजान की जनता जो शीघ्र ही अपनी स्वतन्त्रता की दसवीं वर्षगाँठ मनाने जा रही है विश्व में स्थापित नियमों और कानूनों के अनुसार, शान्ति और चैन के साथ रहना चाहती है और रचनात्मक काम करना चाहती है। आज हमारे देश और हमारी जनता का लक्ष्य है कई शताब्दियों से आज़रबैजानियों के विरुद्ध चलाई जा रही जाति-संहार की नीति के सत्य को सारी दुनिया के सामने रखना, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा उचित न्याय की स्थापना, जाति-संहार की नीति के भयंकर परिणामों को दूर करना और ऐसे गम्भीर उपाय करना ताकि फिर से दुबारा न घटित हों।

हमारी जनता पर ढाई गई यातनाएँ अपनी गम्भीरता, व्यापकता और परिणामों में ऐसी हैं कि उन्हें मानवता के विरुद्ध किए गए अपराध की तरह माना जाना चाहिए, उनकी अन्तरराष्ट्रीय राजनीतिक-वैधानिक आकलन किया जाना चाहिए और उनके आयोजकों तथा विचारकों को समुचित दण्ड दिया जाना चाहिए। सभी को आश्वस्त होना चाहिए कि यदि इस आधुनिक जगत में कोई अपने लिए «धरती में अधिक ज्यादा जगह» पाने का «बृहत् आर्मेनिया» सपना पाले हुए है, अन्य लोगों के प्रति घृणा और सम्पूर्ण युद्ध की विचारधारा के प्रचार में लगा हुआ है, अपने पड़ोसियों के विरुद्ध आक्रमण की नीति का पालन कर रहा है तो उसे कभी-न-कभी इतिहास और मानवता के आगे जवाब देने को खड़ा होना ही पड़ेगा।

इन घटनाओं को, इन सीखों को भुला देने का हमें कोई अधिकार ही नहीं है। इतिहास को भुला देना हमारी जनता को बहुत महँगा पड़ सकता है। समय-समय पर आज़रबैजानियों पर किए गए इन गम्भीर अपराधों को न भुलाना और नई बढ़ रही पीढ़ी को दुष्ट ताकतों और उनके बुरे इरादों के प्रति सचेत बने रहने की शिक्षा देना बहुत अधिक महत्व रखता है।

मैं एक बार फिर गहरे शोक की भावना को साथ जाति-संहार का शिकार हुए लोगों का पावन स्मरण करते हुए उनका नमन करता हूँ तथा कामना करता हूँ कि हमारी जनता को धैर्य और दृढ़ता प्राप्त हो।

हैदर अलीयेव

आज़रबैजान गणराज्च के राष्ट्रपति

समाचार-पत्र «बकीन्स्की रबोची», 28 मार्च 2001