आज़रबैजान राजकीय तेल निधि की पर्यवेक्षण परिषद की पहली बैठक में आज़रबैजान गणराज्य के राष्ट्रपति हैदर अलीयेव द्वारा दिया गया भाषण, 17 जुलाई 2002


आज़रबैजान राजकीय तेल निधि की पर्यवेक्षण परिषद की बैठक के सम्माननीय भागीदारो!

आज मैंने आज़रबैजान राजकीय तेल निधि की पर्यवेक्षण परिषद की यह पहली बैठक बुलाई है। जैसा कि आपको मालूम है, सन् 1999 के अन्त में मेरे द्वारा निकाले गए आदेश के द्वारा आज़रबैजान में राजकीय तेल निधि की स्थापना की गई थी। राजकीय तेल निधि की स्थापना आज़रबैजान द्वारा सन् 1994 से व्यवहार में लाई जा रही तेल रणनीति की बदौलत सम्भव हुई थी। आज़रबैजान की तेल रणनीति को बनाते और उसे अमल में लाते समय हमने अपने सामने एक बड़ा आधारभूत लक्ष्य रखा था - विदेशी कम्पनियों के साथ मिल कर, उनकी ओर से पूँजी-निवेश आकर्षित करके आज़रबैजान के तेल और गैस के स्रोतों तथा प्राकृतिक सम्पदा का दोहन करते हुए हमारे विपुल स्रोतों से तेल और गैस प्राप्त करना और स्वाभाविक है कि इस सबको आज़रबैजान के राष्ट्रीय हितों में लगाना। अर्थात् यह पूरी रणनीति केवल आज़रबैजान के राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रख कर बनाई गई है। 

निश्चय ही, ‘हित’ एक बहुत व्यापक संकल्पना है। इस सम्बन्ध में बहुत सारे प्रश्न हमारे सामने हैं। उनमें से सबसे पहले स्थान पर हैं - आज़रबैजान की अर्थव्यवस्था का विकास, सामाजिक समस्याओं का हल और आज़रबैजान की जनता के जीवन-स्तर में सुधार। सबसे पहले दिन से ही हमारी रणनीति ने हमारे अन्दर बड़ी-बड़ी आशाएँ जगा दी हैं। सर्वविदित है कि हमारी तेल-रणनीति का कार्यान्वयन बड़ी कठिन परिस्थितियों में शुरू हुआ था। शुरू से ही हमें अपने देश के विरुद्ध विध्वंसात्मक कार्रवाइयों, आतंकवादी गतिविधियों और राज्य-विप्लव के प्रयासों का सामना करना पड़ा था। इस सबके बावजूद हमने अपनी इच्छा-शक्ति को धोखा नहीं दिया और अपने चुने हुए मार्ग से हम हटे नहीं। अब तो यह दिखाई दे ही रहा है कि हमें बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं तथा आगे और भी अच्छे परिणाम प्राप्त करने की सम्भावनाएँ और परिस्थितियाँ पैदा हो गई हैं। 

“अज़ेरी - चिराग - ग्युनेश्ली” तेल के कुओं पर काम करने के सम्बन्ध में सन् 1994 में हस्ताक्षरित हुए ठेके पर सबसे पहले काम “चिराग” से शुरू हुआ था। यह विशाल परियोजना बहुत कम समय में कार्यान्वित हो गई थी। “चिराग” तेल-कूप में जो प्लेटफ़ार्म लगाया गया था वह आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप था और उच्च तकनीक तथा प्रौद्योगिकी से लैस था। नवम्बर 1997 में वहाँ से पहली बार तेल निकाल कर उसका निर्यात किया गया था। 

बाकू-सुप्सा तेल पाइपलाइन का निर्माण आवश्यकता बन गई थी। इसलिए कि हम “चिराग” तेल-कूप से निकाले जाने वाले तेल का निर्यात बाकू-नोवोरोस्सीस्क मार्ग से करते आ रहे थे। परन्तु, एक ओर तो, इस पाइपलाइन के द्वारा निर्यात के सारे कार्यक्रमों को पूरा कर सकना सम्भव नहीं थ जिसके कारण हमारे सामने बहुत सारी समस्याएँ आ गई थीं। दूसरी ओर, हम वैकल्पिक तेल पाइपलाइनें बिछाना भी उचित समझते थे। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए बाकू-सुप्सा तेल पाइपलाइन का निर्माण किया गया था जो अप्रैल 1999 में चालू हो गई थी। कहने का मतलब यह है कि तेल पाइपलाइन में तेल भर दिया गया था और हमने सुप्सा में इस पाइपलाइन से तेल को भेजते हुए देखा था। इस अवसर पर एक समारोह भी आयोजित किया था।

इस तरह तेल रणनीति के कार्यान्वयन के पहले परिणाम हमारे सामने हैं। परिणाम यह है कि कुछ कम्पनियों के साथ मिल कर हम संयुक्त रूप से “चिराग” तेल-कूप से तेल निकालने का काम कर रहे हैं, उसका निर्यात कर रहे हैं और इस परियोजना से हमें लाभप्रद तेल प्राप्त हो रहा है। इसीलिए इस लाभप्रद तेल का उचित उपयोग करने का प्रश्न उठा है अर्थात् यह प्रश्न पैदा हुआ है कि आज़रबैजान के हिस्से में आनेवाले तेल से होनेवाली आमदनी का उचित उपयोग कैसे किया जाए। अभी ही नहीं, पहले से ही हम इस बारे में सोचते आ रहे हैं। हमारे मन में ऐसा विचार था कि अलग से एक ‘तेल निधि’ स्थापित की जाए, इन परियोजनाओं से होनेवाली आमदनी को उसमें डाला जाए और इस तरह एकत्र हुई निधि का उपयोग देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण कामों में किया जाए। सबसे पहले तो इस आय को एकत्र करना है और भविष्य के लिए आधार तैयार करना है। स्वाभाविक है कि यह आय क्रमशः बढ़ रही है और बढ़ती ही जाएगी। इस तरह आय में वृद्धि हो जाने के बाद उसके उसके उपयोग की अधिक सम्भावनाएँ दिखाई देने लगेंगी। 

‘तेल निधि’ की स्थापना के बारे में आज़रबैजान में विचार किया गया है। इस पर अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय केन्द्रों में भी विचार किया गया है। इस मामले में दुनिया भर के देशों के अनुभवों का हमने विस्तार से अध्ययन किया है। इस पूरे काम में हमारा एक ही उद्देश्य रहा है - ‘तेल निधि’ की स्थापना, उसका रूप, उसका संचालन और उसके उपयोग की क्रियाविधि इस प्रकार निर्धारित होनी चाहिए कि निधि के आय-व्यय में खुलापन और पारदर्शिता हो; यह पारदर्शिता न केवल उससे सम्बद्ध लोगों के लिए ही हो, बल्कि हमारे पूरे समाज के लिए भी हो, यहाँ तक कि इस विषय में रुचि रखनेवाले अन्य देशों के लोगों के लिए भी हो।

इस उद्देश्य को हम पहले स्थान पर रखते आए हैं और रखा भी है। पहली बात तो यह है कि पहले भी तेल से आय तो होती थी मगर कभी-कभी वह तुरन्त ही उड़ा भी दी जाती थी – यह ठीक है कि उस जमाने में ‘तेल निधि’ जैसी कोई चीज़ थी भी नहीं। दूसरी बात यह है कि कभी-कभी देश के सामने बड़ी ज़रूरतें पैदा हो जाती हैं, तब यदि मेरे द्वारा बताई गई प्रणाली नहीं बनी हो तो कोई व्यक्ति इन ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इस आय का उपयोग करने का प्रयास कर सकता है और इसमें सफल भी हो सकता है। इसके अतिरिक्त यह बात भी है कि आज़रबैजान के प्राकृतिक संसाधन जनता की सम्पत्ति हैं। यह जनता की मिल्कियत है, और किसी की नहीं है। राज्य और सत्ता को हमेशा यह याद रखना चाहिए कि प्राकृतिक संसाधन जनता की सम्पत्ति हैं, जनता ने तो राज्य और सत्ता पर अपना विश्वास अभिव्यक्त कर रखा है। इन संसाधनों का उपयोग केवल जनता की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ही किया जाना चाहिए। इन्हीं सिद्धान्तों के आधार पर ‘तेल निधि’ की स्थापना करने के उद्देश्य से हमने इतनी लम्बी बैठकें कीं। कई बार लम्बी-लम्बी बहसें भी हुईं, तरह-तरह के सुझाव सामने आए। अन्ततः, अन्तरराष्ट्रीय अनुभवों का अध्ययन करने के बाद तथा आज़रबैजान का विशिष्टताओं को ध्यान में रखते हुए हमने ‘आज़रबैजान राजकीय तेल निधि’ की स्थापना की है। तब से जो दो साल का समय बीता है, उससे इस बात की पुष्टि होती है कि हमने जो संरचना और प्रणाली खड़ी की है वह बिल्कुल ठीक और उचित प्रकार की है।

इस निधि की स्थापना के समय विभिन्न देशों की कुछ शक्तियों ने अफ़वाहें उड़ाई थीं कि यह निधि, लगता है, चल नहीं पाएगी, जैसा कि अमुक देश में हुआ था, और उन्होंने अपनी ओर से ऐसे सुझाव दिए थे जिनसे आज़रबैजान के प्रभुसत्तात्मक अधिकार घटते थे। या फिर आज़रबैजान के विपक्षी दल तो हमेशा ही कुछ-न-कुछ ढूँढने का कोशिश में लगे रहते हैं ताकि महीनों तक - अनन्त काल तक – निरर्थक और व्यर्थ की बातचीत चलती रहे। अधिकांश मामलों में जब उन्हें कुछ नहीं मिलता है, वास्तव में ही उनके हाथ कुछ नहीं आता है, तब वे मनगढ़न्त बातें फैलाने लगते हैं। 

परन्तु इस मामले में तो एक विषय है ही – तेल का खनन और तेल की बिक्री से होनेवाली आमदनी। इस आमदनी का उपयोग, वास्तव में ही, बहुत गम्भीर विषय है। इस विषय की गम्भीरता आज के लिए भी है, भविष्य के लिए भी है और आनेवाली पीढ़ियों के लिए भी। ‘तेल निधि’ के रूप में इस तरह की बहुत विश्वसनीय प्रणाली की स्थापना से यह आश्वासन मिलता है कि हमारी वर्तमान सत्ता के काल में होनेवाली पूरी आमदनी का उपयोग आज़रबैजान की जनता के हित में किया जाएगा। परन्तु यदि भविष्य में कोई इस प्रणाली को बदलेगा या इसके टुकड़े करेगा या इस धनराशि को बर्बाद कर देगा तो आज़रबैजान को, निश्चय ही, तुरन्त भारी नुकसान झेलना पड़ेगा और जनता अपनी ही सम्पदा से वंचित हो जाएगी। यह बहुत ही गम्भीर मामला है। मेरा मानना है कि हमारे द्वारा स्थापित यह ‘तेल निधि’ बहुत विश्वसनीय है और हमें लगातार ही इस विश्वसनीयता को बनाए रखना है। इसलिए इस प्रणाली की गतिविधियाँ ऐसी होनी चाहिए कि जिनसे इसकी विश्वसनीयता लगातार बनी रहे। 

मैंने यह कहा है कि मेरे आदेश में व्यक्त हुए सिद्धान्तों से इस काम में खुलापन और पारदर्शिता बनी रहेगी। ‘तेल निधि’ को प्राप्त होने वाली राशि और इस राशि के खर्च हुए भाग की जानकारी समय-समय पर प्रेस में प्रकाशित की जाती है और भविष्य में भी ऐसा होते रहना चाहिए। परन्तु ‘तेल निधि’ को संचालित करने की बहुत सारी प्रक्रियाएँ भी हैं। इसीलिए मेरे आदेश के द्वारा हमने पर्यवेक्षण परिषद की स्थापना की है। इस पर्यवेक्षण परिषद में कार्यपालिका, विधायिका तथा हमारे समाज के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। कार्यपालिका और समाज के प्रतिनिधियों को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया गया है जबकि विधायिका के प्रतिनिधि मिल्ली मजलिस के प्रस्ताव के अनुसार मनोनीत किए गए हैं। 

इस तरह से हमने इस काम में कार्यपालिका और विधायिका दोनों को ही शामिल कर लिया है। मैं फिर से यह कहना चाहता हूँ कि मेरे आदेश में, पारित किए गए प्रस्ताव में तथा अन्य अभिलेखों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने वाले बहुत गम्भीर सिद्धान्तों की अभिव्यक्ति हुई है जो ‘तेल निधि’ के साधनों के उपयोग में होने वाले किसी भी प्रकार के उल्लंघन को रोक सकेंगे।

पर्यवेक्षण परिषद को लगातार काम करना होगा। इसकी बैठकें हर तिमाही में होनी चाहिए। ‘राजकीय तेल निधि’ का रपट पर्यवेक्षण परिषद के सामने प्रस्तुत की जानी चाहिए। पर्यवेक्षण परिषद के सामने न केवल ‘तेल निधि’ की रिपोर्ट, बल्कि ऑडिट रिपोर्ट भी प्रस्तुत होनी चाहिए और परिषद को इन पर अपनी सम्मति व्यक्त करनी चाहिए। मैं एक बार फिर दोहरा देना चाहता हूँ कि यह सारी संरचना और प्रणाली इसलिए ज़रूरी हैं ताकि ‘राजकीय तेल निधि’ की गतिविधियों में ईमानदारी, निष्ठा और पारदर्शिता बनी रहे।

मेरे विचार में वर्तमान अवस्था में हमें ‘तेल निधि’ में आने वाली राशि को जमा करके विभिन्न बैंकों में रखना चाहिए। ‘तेल निधि’ के उच्चाधिकारियों को अच्छी तरह मालूम है कि ऐसे बैंक कौन-से हो सकते हैं। हमें इस राशि का उपयोग अत्यन्त आवश्यक अवसरों पर ही करना चाहिए। एक साल, दो साल, तीन साल बाद हमारी आमदनी बढ़ जाएगी और तेजी से बढ़ेगी। तब हमें सोचना होगा कि इस निधि के कितने अंश को बचा कर रखा जाए और कितने अंश को कुछ सामाजिक कामों में तथा जनता की सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में लगाया जाए तथा निधि के कुछ अंश का विभिन्न प्रकार से पूँजी-निवेश के रूप में उपयोग किया जाए जिससे कुछ आय होती रहे। कहने का तात्पर्य यह है कि ‘तेल निधि’ की राशि को वहीं-का-वहीं पड़े रहने देना उचित नहीं होगा। यह बहुत बड़ी धन-राशि है। विश्व की वित्त-व्यवस्था से हमें यह पता चलता है कि राज्य अथवा कोई अन्य संरचना या कोई बैंक जिनके पास बहुत बड़ी धन-राशि होती है उसे केवल जमा करके, इकट्ठा करके रखे ही नहीं रहते हैं, वे उसका उपयोग भी करते रहते हैं। इस तरह उपयोग करने से भी उनकी आमदनी होती है। इसलिए ‘तेल निधि’ का एक भावी लक्ष्य यह होना चाहिए कि एकत्र हुई धन-राशि के उपयोग के लिए ऐसे उपाय किए जाएँ कि हमारे देश को अतिरिक्त आय मिलती रहे। 

आज पर्यवेक्षण परिषद की पहली बैठक है। पर्यवेक्षण परिषद के सदस्यों के नाम सबको विदित हैं ही। कह नहीं सकता कि सारे नामों को पढ़ कर सुनाना क्या ज़रूरी है - आर्तुर रसीज़ादे, आरिफ़ रहीमज़ादे, वाहिद अख़ुन्दोव, इल्हाम अलीयेव, अवेज़ अलेक्पेरोव, फ़रहाद अलीयेव, हैदर बबायेव, एल्मान रुस्तमोव, अली अब्बासोव, महमूद करीमोव और ‘तेल निधि’ के संचालक समीर शरीफ़ोव। इनके अतिरिक्त उप-प्रधानमन्त्री अली हसनोव, मेरे सहायक अली असादोव, एक अन्य सहायक दिल्यारा सईदज़ादे तथा मेरे कुछ अन्य कर्मी भी निमन्त्रित किए गए हैं। जैसा कि घोषणा की गई थी और आपको मालूम ही होगा कि ‘तेल निधि’ से सबसे पहली राशि शरणार्थियों, उत्प्रवासियों की समस्याओं से निपटने के लिए दी गई थी जिसके बारे में उप-प्रधानमन्त्री, निश्चय ही, वक्तव्य देंगे। इनके अतिरिक्त यहाँ पर ऑडिट कम्पनी “अर्न्स्ट एण्ड यंग” के प्रतिनिधि जॉली केट्प्बेल भी उपस्थित हैं। हमें उन्हें भी और उनके द्वारा दी जाने वाली जानकारी सुनने का अवसर मिलेगा।

अब मैं ‘तेल निधि’ के कार्यकारी निदेशक समीर शरीफ़ोव को अपना वक्तव्य देने के लिए आमन्त्रित करता हूँ।

समाचार-पत्र “बकीन्स्की रबोची”, 18 जुलाई 2002