आज़रबैजान प्रजातंत्र के राष्ट्रपति हैदर अलीयेव की युरॉप में सुरक्षा और सहयोग संघठन (OSCE) के मिंस्क ग्रूप के अमरीकी सह-अध्यक्ष रुडॉल्फ पेरीना के साथ बातचीत से - राष्ट्रपति भवन, 25 अक्तूबर 2001


हैदर अलीयेव - आदरणीय श्री पेरीना,

आदरणीय राजदूत,

संयुक्त राष्ट्र अमरीका के मिंस्क ग्रूप में सह-अध्यक्ष के तौर पर आज़रबैजान में आप को स्वागत कर रहा हूँ। मैं प्रसन्न हूँ कि आप आज़रबैजान में आये हैं। मुझे पता है कि आप आर्मेनिया में से भी होकार आये हैं। स्थान में काम शुरू करने से पहले स्थिति से परिचित हो जाना सही लगता है।

आर्मिनियाई-आज़रबैजानी जगड़े को शांतिपूर्ण तरीक़े से हल करने की समस्या का लम्बा इतिहास है। इस दौरान सह-अध्यक्षों के प्रतिनिधि कई बार बदले गये। सिर्फ आज़रबैजान में होनेवाला एक आदमी बदला ना गया। वही मैं हूँ। इस लिये मुझे मालूम नहीँ है कि मैं संयुक्त राष्ट्र अमरीका के कौनसे प्रतिनिधि से अभी मिल रहा हूँ। जब नया सह-अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है तो मुझ में आशा पैदा होती है कि इस नयी नियुक्ति से हमारा काम और आगे चलेगा। ठीक है, यह आशा मुझ में बहुत समय पहले पैदा हुई है आर आभी तक वह बुझे नहीं। मुझे आशा है कि आप संयुक्त राष्ट्र अमरीका के मिंस्क ग्रूप में सह-अध्यक्ष के तौर पर इस समस्या से अधिक गंभीरता से व्यस्त होंगे।

मुझे पता है कि यह सिर्फ आप पर निर्भर नहीं है। यह राष्ट्र के पूरा का पूरा इस समस्या को व्यवहार पर निर्भर है। मैं आर्मिनियाई-आज़रबैजानी झगड़े को शांतिपूर्ण तरीक़े से हल करने में संयुक्त राष्ट्र अमरीका की नीति को और उन के दिये हुए वचनों पर विश्वास रखता हूँ। पर इन को पुरा करने की मौका अभी तक न मिली है। में चाहता हूँ कि इस दौरान जब तक कि हम इस समस्या से व्यस्त हैं, हम इस समस्या को पुरे हल करें। क्योंकि आख़िरी समय हम ने कुछ प्रगति की हैं। हलांकि वह ढृढ़ नहीं है और कभी वह सक्रिय रूप से चलता है, कभी धीरे से। मैं चाहता हूँ कि वह कभी धीरे से न चले बल्कि और आगे बढ़े। इस लिये में आप से गहरा सहयोग करने के लिये तैयार हूँ। मेरी यह इच्छा है कि आप एक तरफ़ से इन सवालों को सही तरीक़े से समझ लें और दुसरी तरफ़ से इन को अपने सरकार के ध्यान तक पहूँचा दें। पर मुख्य समस्या यह है कि हम आखिरि नतीजे तक पहँच जायें।

रुडॉल्फ पेरीना - आप को बहुत धन्यवाद, श्री राष्ट्रपति। मैं आपको आप से मिलने की इस मौक़ा के लिये बहुत आभारी हूँ।

श्री राष्ट्रपति, में ने इस मुलाक़ात के लिये कोई नई प्रस्ताव नहीं ले आया हूँ। और मेरी किसी भी बातचीत करने और छोटी से छोटी बातें करने कि इरादा नहीं हैं। आप ने भी बिल्कुल सही बताया है कि मेरी इस क्षेत्र में यही सफ़र का उद्देश्य हालत से परिचित होना है। फिर भी इस सप्ताह के आख़िर में हम तीनों सह-अध्यक्ष लिस्बॉन में मिलेंगे। वहाँ पर बहस करने के बाद हम नवंबर के शुरू में यहाँ पर यात्रा करेंगे और क्षेत्र के इस झगड़े में लगे हुए दुसरे स्थानों में भी जायेंगे। लिस्बॉन में परामर्श करने से पहले और हमारे इस मुलाक़ात में मैं आप से बात करना और बातचीत के प्रक्रिया के बारे में आप की राय पता करना चाहूँगा। मैं आप की भाविष्य के बारे में सोच-विचार पता करना और आजकल की स्थिति का मूल्यन से परिचित होना चाहता हूँ।

जैसे कि मालूम है आपका राय हमारे लिये अत्यंत महत्व रखता है और इस से यह भी निर्भर है कि मिंस्क ग्रुप अपने काम भविष्य में कैसे चलाएंगे। पर मैं इस में बहस खत्म करना नहीं चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि हम इस बहस के दौरान दुनिया में 11 सितंबर के दुःखदायक घटनाओं के बाद मौजुद स्थिति के बारे में भी बातचीत करें। मैं इन दुःखदायक घटनाओं के बाद वाशींगॉन में से इस क्षेत्र में आया हुआ पहला प्रतिनिधि हूँ। मैं आप को यही कहना चाहता हूँ कि इन घटनाओं से अमरीका में बहुत बेचैनी हुई। इस के साथ-साथ उन घटनाओं से सारे दुनिया में बड़े प्रभाव पड़ा। और दुनिया कुछ बदल गया।

मुझे फिर भी विश्वास है कि उन घटनाओं के बाद पैदा हुआ नया दौरान ने इस क्षेत्र पर भी अपना प्रभाव डाला। मैं आप से यही समस्या पर बहस करना चाहता हूँ कि इन घटनाओं का पहाड़ी कराबाग़ के झगड़े पर कया-कया प्रभाव रहेगा।

हम संयुक्त राष्ट्र अमरीका में इस आख़िरी दशक को कॉल्ड वॉर (cold war) के बाद आये हुए अगला दौरान कहता हैं। इस दौरान में रहकर हमें भविष्य में आनेवाली घटनाओं की आशा नहीं थी। 11 सितंबर में हुई घटनाओं ने जल्दी से, एकदम दुःखदायक रूप से दुनिया में स्थिति बदल दी। हमें इन घटनाओं के प्रभाव की शक्ती के बारे में सही पता नहीं हैं। इस के साथ-साथ यह भी मालूम है कि आजकल संसर में बहुत महत्वपूर्ण दौर आऐगी। यह आतंकवाद के विरोध जंग के आधिकपत्य की अवधि होगी। मेरे विचार में यह दौरान कॉल्ड वॉर से मुक़ाबला में बहुत तनावपूर्ण अवधि होगी।

इस नइ अवधि में नये हित, नयी प्रथमताऐं पैदा होंगी और देशों के बीच नये संबंध बन जायेंगे। इन घटनाओं का हितों पर, स्थितियों पर अच्छे और बुरे प्रभाव रहेगा। बाद में मैं इस पर साफ़ बातें करूँगा।

मेरे विचार में जब नयी प्रथमताऐं पैदा होंगी और झगड़ों को हल करना पहली प्रथमता होगी तो वह बहुत महत्वपूर्ण समस्या बनेगी। विशेष तौर पर क्षेत्र में स्थीरता को अढृढ़ करनेवाली और हमें मुख्य समस्याओं से दूर करनेवाला पहाड़ी कराबाग़ के जगड़े की जैसी समस्या के हल में आवश्यकता होगी। संयुक्त राष्ट्र संसर के इस भाग में हमेशा दिलचस्पी रखता और पहाड़ी कराबाग़ के जगड़े के हाल के लिये कोशिश करता रहा। पर 11 सितंबर की घटनाओं के बाद संयुक्त राष्ट्र अमरीका की ईच्छा, इरादा और बढ़ जायेगी। भविष्य में हमारे गहरे सहयोग में सख़्त ज़रूरात पड़ेगी। कयोंकि हम इस क्षेत्र को स्थीर और हम से सही सहयोग करनेवाला देखना चाहता हैं।

मैं यह कहना चाहता हूँ कि इन घटनाओं की जारी होकर दुसरी घटनाऐं भी होगी। इन में से एक को हम इन दिनों में देख रहे हैं। आजकल संयुक्त राष्ट्र अमरीका के कॉंग्रेस में फ्रीडॉम सापॉर्ट ऐक्ट के 907वीं अमेंडमेंट (907thamendment to Freedom Support Act) पर बहस चलती रही है। आशा है कि इस को हटाने के लिये बील पास किया जाना है कि राष्ट्रपति हमारे दोनों देशों के बीच एक रुकावाट हुई इस अमेंडमेंट को हटा कर सके। मेरे विचार में मेरी तरफ़ से नॉट कि गयी तब्दीलियां, जिसके बारे में आगे बात करूँगा, हमें झगड़ों का, खास तौर पर पहाड़ी कराबाग़ का हल पाने में मदद करेगी।

श्री राष्ट्रपति, खुले बात करें तो अगर हम इस झगड़े का हल न करें तो वह हमारी तरफ से शूरु हुई नयी अवधि में पुराने जमाने से रह गई समस्या के तौर पर पास हो जाऐगी और इस का हल न होने से इस क्षेत्र में रहनेवाली सारी तरफों पर हानि पहुँच जायेगी। आखिर में मैं यह कहना चाहता हूँ कि आजकल इस समस्या के हल करने के लिये अच्छे सुअवसर हैं। आज़रबैजान का और निःसंदेह आपका निजी भाग इस समस्या के हल में बहुत कुछ कर सकते हैं।

हमारे इस बातचीत के शुरू में आप ने कहा है कि आख़िरी समय इस समस्या के हल में कुछ प्रगति हो गई। आप ने बिलकुल सही नॉट किया। आजकल हमारे मुख्य उद्देश्य इस प्रगति से एक फैसला बनाना है। मेरी इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य इस प्रगति के बारे में आप का राय सुनना और आप हमें इस प्रगति को कैसी तरीक़े से जल्द करने के लिये आपने सलाह दें। बहुत धन्यवाद।

हैदर अलीयेव - बहुत धन्यवाद। आप ने कहा है कि हम इन समस्याओं पर बाद में बात करेंगे। आप ने बड़े विस्तार से बताया है कि 11 सितंबर में हुई घटनाऐं, जो संयुक्त राष्ट्र अमरीका के विरोध किया गया एक भयानक आतंक था, सारे संसार में हालत बिलकुल बदल की। मैं इस राय से राज़ी हूँ। मैं इस से भी राज़ी हूँ कि कॉल्ड वॉर ख़त्म होने के बाद सारे राष्ट्र, जनताऐं यह सोचते थे कि वह बिलकुल ख़त्म हो गया है। पर हम ने इस का उल्टा होना देखा। हम भी यही चाहते थे कि कॉल्ड वॉर ख़त्म होने के बाद सारे संसार में स्थीरता और शांती कायम हो जाये और कॉल्ड वॉर ख़त्म होना सिर्फ पुरब और पश्चीम के बीच प्रतिद्विंद्वता का ख़त्म ना हो।

आजकल हम इसका दावा नहीं कर सकते कि हम सब कुछ पूर्वानमान कर सकते हैं। ठीक है, दुनिया के बड़े राष्ट्र, अंतर्राष्ट्रीय संगठन इस के सही तरीक़े से निश्चित करने थे। लेकिन खेद है कि दुनिया में सब में ऐसा राय पैदा हुआ कि कॉल्ड वॉर ख़त्म हो गया और पुरब और पश्चीम के बीच प्रतिद्विंद्वता का ख़त्म हो गया, यानी नाटॉ (NATO) और वरसॉ ब्लॉक के बीच प्रतिद्विंद्वता का ख़त्म हो गया, वरसॉ ब्लॉक टूट गया और कॉल्ड वॉर का ख़त्म हो गया। सचमुच यह दुसरे विश्व जांग के बाद एक बड़ी ऐतिहासिक घटना थी।

पर संसार में प्रक्रियाओं की आजकल विभिन्न दिशाओं में विकास और बहुत खतरनक घटनाओं का पैदा होने से इसकी पुष्टी हो रही है कि सिर्फ इस से संतुष्ट होना नहीं चाहिये था। मैं इस के साथ यही कहना चाहता हूँ कि बड़े कॉल्ड वॉर का ख़त्म करने के बाद दुनिया के बड़े राष्ट्र विभान्न क्षेत्रों में हुए जगड़ओं पर भी ध्यान देने थे और इन के हल का भरण-पोषण करने थे।

इन में से एक आर्मिनियाई-आज़रबैजानी, पहाड़ी कराबाग़ का झगड़ा है। अगर विभिन्न क्षेत्रों में झगड़ों के शूरु होने के समय पर ध्यान दिया जाये तो यह कहा जा सकता है कि दुनिया में पुरब में फ़िलिस्तीन-इजराईली झगड़े के बाद सब से लंबा झगड़ा आर्मिनियाई-आज़रबैजानी, पहाड़ी कराबाग़ का झगड़ा है।

अगर सोवियत संघ का क्षेत्र देखें तो यह झगड़ा सन् 1988 से शुरू हुआ, जब सोवियत संघ मौजूद था। चार साल के दौरान यह झगड़ा उसी समय जारी होता जाता था जब आर्मिनिया और आज़रबैजान सोवियत संघ के भाग में मौजूद थे। पर सोवियत सरकर की अध्यक्षता इस झगड़ा का सही मूल्या न दे सका और इस झगड़े से जंग बढ़ गई।

सोवियत संघ टूटने के बाद, हमें स्वतंत्रता मिलने के बाद आर्मिनियाई-आज़रबैजानी झगड़ा से संयुक्त राष्ट्र संगठन (UNO), युरॉप में सुरक्षा और सहयोग संघठन (OSCE) के मिंस्क ग्रूप व्यस्त थे। सन् 1997 से मिंस्क ग्रूप की अध्यक्षता तीन बड़े राष्ट्र की तरफ़ से यानी रुस, संयुक्त राष्ट्र अमरीका और फ्रेंस तरफ़ से की जाती है। सही समय पर आर्मिनियाई-आज़रबैजानी, पहाड़ी कराबाग़ झगड़ा का हल ना करना जोर्जीयान-अबख़ाज झगड़ा तक ले आया। द्नेस्र पर झगड़ा भी शुरू हुआ, आप वहां पर गये थे। बाद में चेचेन झगड़ा भी शुरू हुआ। जोर्जीया का दाक्षीनी ऑसेटाया के साथ भी झगड़ा है। आप देख रहे हैं कि किने झगड़े पैदा हुए। आभी मध्य ऐशिया में भी हालत खराब हो गयी।

उस के साथ मैं यही कहना चाहता हूँ कि दुनिये में आभी तक पुरी शांति नहीं पाई और किसी को भी यह ना सोचना था कि शांति कायम हो गयी। महान देशों ने, संयुक्त राष्ट्र संगठन ने (UNO), युरॉप में सुरक्षा और सहयोग संघठन ने(OSCE) क्षेत्रीय झगड़ों पर ज़रूरी ध्यान ना दिया।

एक बार और दोहरा रहा हूँ कि मैं आप से राज़ी हूँ कि 11 सितंबर की घटनाऐं सारे संसार की हालत बिलकुल बदल रही हैं। क्योंकि इन झगड़ों की नींव में आतंक, अंतर्राष्ट्रीय आतंक है। आतंक पैदा होना का कारण आक्रमणकारी पृथक्तावाद है। आक्रमणकारी पृथक्तावाद आतंक का आरंभ है। पर अफ़सोस की बात यह है कि सही समय पर इन कारणों पर ज़रूरी ध्यान ना दिय गया था। आजकल कुछ लोग आक्रमणकारी पृथक्तावाद और अंतर्राष्ट्रीय आतंक के बीच अंतर लगाता है। लेकिन इन दोनों के बीच संबंध हैं। इस लिये इस चरण में हमें अपनी शक्ति एकसाथ करनी चाहिये। अंतर्राष्ट्रीय आतंक के विरोध आम संघर्ष किया जाना है।

संयुक्त राष्ट्र अमरीका के विरोध किया गया आतंक, निःसंदेह एक ऐसा आतंक है जो सारी मानवता, यानी सारी जनताओं के विरोध, स्वतंत्र सामाजों के विरोध किया गया आतंक है। यहाँ पर हमें अपनी शक्ती एकसाथ करनी है। हम आजरबैजानी राष्ट्र ने शुरू से खुले रुप से इस समस्या में अपना रुख का घोषणा किया है और संघर्ष में लग गये हैं। हम ने घोषणा किया है इस संघर्ष में हम संयुक्त राष्ट्र अमरीका और उसके मित्र-देशों के साथ हैं। जैसे कि आप को पता है हम इस दिशा में अपनी कार्रवाई जारी रख रहा हैं।

मैं आप से फिर सहमत हूँ कि अंतर्राष्ट्रीय आतंक दुनिया में स्थिति बिगाड़ जायेगी और उन देशों को, जो कॉल्ड वॉर खत्म होने के बाद कुछ एकता तक आना चाहते थे, एक दुसरे से दूर करवायेगे, उनके हित टकरा जायेंगे। इस लिये इस दिशा में बहुत कुछ करना है।

लेकिन मुझे आपके यह राय से खूशी हो गई है कि अभी आर्मिनियाई-आज़रबैजानी, पहाड़ी कराबाग़ के झगड़े के हल को बाद में छोड़ना नहीं चाहिये और इस से गंभीरता से व्यस्त होना चाहिये। इस को हल करना और क्षेत्र में स्थीरता कायम करनी चाहिये। यह अंतर्राष्ट्रीय आतंक के विरोध, अंतर्राष्ट्रीय आतंक के हाथों में हुआ मुख्य केंद्र के विरोध किया गया काम के लिये ज़रूरी है।

मैं आप को यही बात खुला कहना चाहता हूँ कि कुछ लोगों के विचार में संसार में एक ऐसा भयानक आतंक के कारण और उस समय जब आतंक के विरोध बड़े माप-दंड का संघर्ष किया जाता है, संसार के महान देश, युरॉप में सुरक्षा और सहयोग संघठन (OSCE) के मिंस्क ग्रूप के सह-अध्यक्ष भी आर्मिनियाई-आज़रबैजानी, पहाड़ी कराबाग़ के झगड़े के हल में निष्क्रियता दिखा देंगे। मैं हर्गिज़ ऐसा नहीं सोचता हूँ और सोचा भी न था। अभी हमारी बातचीत में यह मालूम हो जाता है कि हमारे विचार एक ही है।

मैं ने कहा था कि आखिरी समय इस क्षेत्र में विशेष प्रगति मिल गई। इस के साथ हमें न केवल इस कार्रवाई को जल्द करने में सफलता न मिल गई बल्कि कुछ हालों में उस को रुकावट मिली। मैं ऐसा सोच रहा हूँ कि चूँकि हम एक संयुक्त मोरचा में शामिल है। सह-अध्यक्षों को इस समस्या के हल के लिये फलप्रद काम करना चाहिये। झगड़े करनेवाली तरफों को यह समजना चहिये कि इस समस्या में किसी भी तरफ का आदेश स्वीकार किया नहीं जा सकता है। इस समस्या के हल में अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियम पर आधार किया जाना चाहिये। मेरे विचार में हम अभी हमारे बातचीत जारी रखेंगे और व्यापक रूप से विचार-विनिमय करेंगे।

 

 

बाकीन्स्कीय राबॉचीयसमाचार-पत्र, 26 अक्तूबर सन् 2001